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Title:
Request to establish a regiment in army on the name of Ahir regiment.
श्री
श्याम सिंह
यादव (जौनपुर): महोदय, कड़कड़ाती
ठंड में, बिलो
जीरो
टेम्परेचर पर, कठिन
मौसम और विषम
परिस्थितियों
में हमारी हिफाजत
के लिए मुल्क
की सरहद पर
तैनात जवानों
को मेरा बहुत-बहुत
शुक्रिया व
मैं उनके प्रति
अपना आभार
प्रकट करता
हूँ ।
हमारे
देश में
महाभारत, भगवान
श्री कृष्ण, द्वारका, यदुकुल
और इन सबका
सूत्रधार, इन
सबकी धुरी
अहीर जाति
हिन्दुस्तान
की संस्कृति
का एक अहम
हिस्सा है ।
वैसे तो सभी
जातियों में
वीर व बहादुर
भरे पड़े हैं, लेकिन
अहीर किसी से
कम नहीं हैं ।
हिन्दुस्तान
का अहीर
बलिष्ठ, वीर, बहादुर
है, जिसका सीना 56 इंच
से भी ज्यादा
होता है, वह साहस
और वीरता में
आगे है और
सबसे बड़ी बात
कि वह बहुत
निडर होता है
। अगर वीर
यादव ने अपनी
भृकुटि टेढ़ी
की, आँखें तरेर
दी तो दुश्मन
भी भाग खड़ा
होता है ।
इतनी
बहादुर जाति
की सेना में
इतनी बड़ी
तादाद होते
हुए भी इनके
नाम से कोई
रेजिमेंट
नहीं है, जबकि
सेना में महार
रेजिमेंट, राजपूताना
रेजिमेंट, सिख
रेजिमेंट, गोरखा
रेजिमेंट, डोगरा
रेजिमेंट आदि
तमाम जातियों
के नाम से रेजिमेंट
के नाम रखे गए
हैं ।
अहीर
रेजिमेंट न
बनने का कारण
यह है कि
अहीरों ने, अहीर
वीरों ने
अंग्रेजों के
शासनकाल में
अंग्रेजों का
बहुत विरोध
किया और
स्वतंत्रता
की लड़ाई बहुत
जोर-शोर से लड़ी ।
महोदय, इतिहास
गवाह है कि
यादवों ने कभी
किसी स्वार्थ
के लिए कोई
समझौता नहीं
किया और इसी
से चिढ़कर
अंग्रेजों ने
अहीर रेजिमेंट
नहीं बनाई ।
चाहे वर्ष 1962 की
रेजांगला
चोटी की लड़ाई
हो, चाहे वर्ष 1965 की
हाजीपीर की
लड़ाई हो, वर्ष 1967 में
नाथूला, चोला की
लड़ाई हो, वर्ष 1984 का
आपरेशन
मेघदूत हो, वर्ष
1999 की कारगिल की
लड़ाई हो या
वर्ष 2000 का
पार्लियामेंट
अटैक हो, वर्ष 2002 का
अक्षरधाम
मंदिर अटैक हो, सभी
में यादव
वीरों ने अपनी
जान देकर शान
दिखाई है, अपना
झंडा गाड़ा है
। कितनी ही
जगह अहीर
शूरवीरों ने
अपना जौहर दिखाया
है और वे खून
की आखिरी बूँद
तक देश के लिए
लड़े हैं ।
महोदय, मैं
आपके माध्यम
से अनुरोध
करता हूँ कि
हमारे समाज की
बहुत बड़ी माँग
है कि सेना
में अहीर
रेजिमेंट के
नाम से एक
रेजिमेंट की
स्थापना की
जाए । धन्यवाद
।
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